उम्मीद के दिये रोशन रहें तो अँधेरे रास्ते भी आसान मालूम होते हैं


अफ्रीकी घास के मैदान में जब बारिश होती है तो खूब बरसती है। जगह जगह जल तालाब बन जाता है। यात्री जानवर इन तालाबों में बसते हैं । इन खेतों में बैल के मुंह जैसे मेंढक होते हैं। मौसम बदलता है। यात्री जानवर एक और उपजाऊ दिशा में जाते हैं। मेंढक रह जाते हैं।



जब गर्मी की तीव्रता से तालाब सूखने लगते हैं। तब यह मेंढक अपने ऊपर बलगम डालकर मिट्टी के अंदर नरम रेत में उतर जाते हैं । कुछ दिनों के बाद ज़मीन के नीचे की जगह सूख जाती है। मेंढ़क अंदर सुरक्षित हो जाता है। शोध कहता है कि यह सात साल तक इसके अंदर रह सकता है। ज़िन्दगी का यह इंतज़ार किसलिए होता है? अगली बारिश आने के लिए। सूखे मैदान फिर से आबाद होने के लिए। जानवर यात्रियों को बार-बार वापस आने के लिए।

एक छोटा सा मेंढक भी निराश नहीं होता, क़ुदरत का इनाम "उम्मीद" से जुड़ा हुआ है। मेंढक जगह नहीं बदल सकता फिर भी वो जीने का अंदाज़ सीख लेता है। हम इंसानों को भगवान ने हर तरह की क्षमता दी है। जब भी मायूसी आपके अन्दर अपना घर बनाये क़ुदरत के इन छोटे पात्रों पर विचार करें। जब ये जानवर उम्मीद नहीं छोड़ते तो निराश होकर आप कहाँ अच्छे लगते हो ?

" उम्मीद के दिये रोशन रहें तो अँधेरे रास्ते भी आसान मालूम होते हैं । "